For all those away from home, here is poem for you all..
घर की याद
शहर की रोशनी जब आँखों को चुभ रही थी,
वही दिल के एक कोने में बूझते हुए दिये जैसे जूझती थी घर की याद।
वह सहमी सी आस
एक ऐसी फ़रियाद जिसका वजूद ना मिल पायेगा शहर के अन्धेरे में,
वह मासूमियत,
वह ख़ामोशी,
हर एक दस्तक में थी घर की याद।
वह अनजानी सड़कों पर जब हम रास्ता खोजते थे,
पुकारती थी घर की याद।
वो खिली खिली सी धूप
वो जाड़े की रात,
वही बस अपनी थी घर की याद।
वह टिमटिमाता दिया लड़ता है इस रोशनी से,
कभी ना खोयेगी मेरे घर की याद।
राह का साथी हमसफ़र बन जाता है,
बंद आँखों का दरवाज़ा खुल जाता है,
फिर भी दिल की खिड़कियों से ढूँढेगी वो पहचान,
मेरे घर की याद, मेरे घर की याद।